छत्तीसगढ़ में रंगकर्म ,रंगकर्म का इतिहास, प्रसिद्ध रंगकर्मी ,उनकी नाटक तथा पुरस्कार सम्मान

इतिहास, विकास एवं वर्तमान गतिविधियॉ :-

छत्तीसगढ़ में रंगकर्म का इतिहास देश का प्राचीनतम रंगकर्म इतिहास है.ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का रंगशाला जो रामगढ़ पहाड़ी की सीताबेंगरा गुफा में प्राप्त हुई है को एशिया के प्राचीनतम नाट्यशाला के रूप में स्वीकार किया जाता है. इस रंगशाला में रंगमंच और दर्शकदीर्घा विद्यमान है. कालक्रम की दृष्टि से इसे भरतमुनि के नाट्य शास्त्र की रचना से पहले का माना जाता है .अगर ऐसा है तो संभवतः भरतमुनि पर इस रंगशाला का प्रभाव अवश्य रहा होगा.

  • 18 वी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में मराठों के आगमन के साथ उनके गम्मत और नाचे की विधाओं ने छत्तीसगढ़ के रंग कर्म को पुनः जीवन प्रदान किया.
  • 20 वीं शताब्दी  के  पूर्वार्द्ध में छत्तीसगढ़ में  बंगाली कलात्मक गतिविधियों के लिए विभिन्न शहरों में कालीबाड़ी की स्थापना से बांग्ला नाटक के मंचन की शुरुआत  हुई .इसी से हिंदी नाटकों के मंचन को भी गति मिली कालीबाड़ी के हिंदी नाटकों में पारसी रंगमंच का प्रभाव है. मराठी रंगमंच के आगमन ने भी छत्तीसगढ़ में रंगमंच की गतिविधियों को गति दी.
  • 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध छत्तीसगढ़ में रंगकर्म के विकास का काल था .इस अवधि में विभिन्न संस्थाओं रंगकर्मी और विधवाओं ने छत्तीसगढ़ की रंगशैली को प्रतिष्ठित किया.
  • छत्तीसगढ़ में रंगकर्म के विकास में सबसे उल्लेखनीय नाम श्री हबीब तनवीर का है जो आरंभ में  इप्टा (भारतीय जन नाट्य संघ) से जुड़े हुए थे. बाद में उन्होंने थिएटर की स्थापना की और इसके माध्यम से छत्तीसगढ़ सॉन्ग कर्म को नया स्वरूप दिया. उन्होंने रंगकर्मी में नए प्रयोग किए, इसे जन-जन की कला बनाई और जन-जन तक पहुंचाया तथा स्थानीय नाचा के अभिनेताओं को अपने थिएटर में स्थान देकर विश्वविख्यात नाटकों की छत्तीसगढ़ी में प्रस्तुत की. उनके द्वारा प्रदर्शित नाटकों में  मृच्छकटिकम् चरणदास चोर, आगरा बाजार आदि ने काफी लोकप्रियता प्राप्त की.
  • छत्तीसगढ़ में रंगकर्म के विकास में दाऊ रामचंद्र देशमुख का नाम विशेष उल्लेखनीय है.
  • रायपुर के विभु कुमार का संबंध हस्ताक्षर, अग्रगामी एवं प्रयास नाटक संस्थाओं से रहा. उन्होंने अनेक नाटक लिखिए और मंचित किए और छत्तीसगढ़ में नुक्कड़ नाटक की परंपरा को स्थापित किए. उनकी प्रसिद्ध प्रस्तुति बाकी इतिहास नामक नाटक है. उदयपुर की रंग कर्मियों में विनय अवस्थी, प्रो जोगलेकर, राजकमल, दिनेश दीक्षित, मिर्जा मसूद आती है. रायपुर की अशोक मिश्र दूरदर्शन से जुड़े, राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कलाकार है.
  • भिलाई, दुर्ग में भिलाई इस्पात संयंत्र के कारण लघु भारत का रूप दिखाई देता है और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए यहां पर्याप्त अधोसंरचना विद्यमान है. जिसके कारण वहां 40 से अधिक कलर संस्थाएं हैं .यहां के विख्यात कलाकारों में सुब्रतो बोस, राजकुमार सोनी, शक्तिपत चक्रवर्ती, गोपाल राजू आदि मुख्य हैं.
  • बिलासपुर के अनेक अभिनेताओं और रंग कर्मियों ने राष्ट्रव्यापी  ख्याति प्राप्त की और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न सम्मान और पुरस्कार अर्जित किए हैं. इनमें सबसे प्रमुख नाम सत्यदेव दुबे का है जो लंबे समय से मुंबई में सक्रिय रहे हैं.
  • राजनांदगांव के भैयालाल हेड़ाऊरायगढ़ की हरी सिंह ठाकुर, प्रमोद वर्मा, उमाशंकर चौबे, अजय आठले, पुष्पराज सिंह आदि रंगमंच के उल्लेखनीय नाम है.
  • हबीब तनवीर (रायपुर) :-
    1943 – 44 में ‘इप्टा’ से जुड़े. भारत भर में नाचे गतिविधियों का प्रचार प्रसार लोक कलाकारों के साथ मिलकर एक रंगमंच कलाकार समूह में नया थिएटर गठन, लोक भाषाओं में कई नाटकों का मंचन उन्होंने छत्तीसगढ़ी कलाकारों को लेकर  मृच्छकटिकम् की हिंदी में अभिनव प्रस्तुति की, चरणदास चोर, आगरा बाजार आदि की प्रस्तुति लोक कथा एवं विदेशी भाषाओं का लोग बोलियों  में मंचन का विशिष्ट कार्य भी किया.
  • पुरस्कार, सम्मान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 1969, पद्म विभूषण 2002 से अलंकृत

.

  • डॉ. शंकर शेष (बिलासपुर) :-
    छत्तीसगढ़ की प्रथम थिएटर ‘जानकी विलास पैलेस’  के संस्थापक स्वर्गीय नागोराव के पुत्र डॉ शंकर से स्कूल नाथ विद्या विरासत में मिली. उन्होंने मध्यवर्गीय समस्याए, सामाजिक संबंध पौराणिक गाथाएं, आदिवासी शोषण सभी को अपनी रचनाओं का आधार बनाया.
  • रचनाएं -22 नाटकों के अलावा नाते अनुवाद, उपन्यास, एकांकी, बाल नाटक आदि की रचना. प्रथम नाटक और मूर्तिकार अन्य नाटको मैं बेटी वाला बाप, तिल का ताड़,बिन पानी के दीप आदि प्रमुख है. उपन्यास- धर्म कुरुक्षेत्र
  • अरे ओ मायावी सरोवर तथा रक्तबीज उनके अत्यंत सफल और प्रसिद्ध नाटक है.
  • नाटक कोमल गंधार को साहित्य कला परिषद का सम्मान मिला, घरौंदा पर बनी फिल्म का पुरस्कार.
  • सत्यदेव दुबे (बिलासपुर) :-
    शिक्षण प्रशिक्षण – प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर में मुंबई के थिएटर आफ ड्रामेटिक आर्ट्स से प्रशिक्षण.
  • योगदान – हिंदी, मराठी, गुजराती में नाटकों की प्रस्तुति, अनेक नाटकों का निर्देशन, अभिनय और निर्देशन का प्रशिक्षण, फिल्मों में अभिनय, पटकथा लेखन, लघु फिल्म निर्माण, वित्त चित्र निर्माण.
  • पुरस्कार  मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शिखर सम्मान, संगीत नाटक अकादमी एवं महाराष्ट्र सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार. मराठी वित्त चित्र को विदेश में अवार्ड भी मिला है.
  • जयंत शंकर देशमुख (रायपुर) :-
    अनेक हिंदी, अंग्रेजी, और मराठी नाटकों का निर्देशन किया है. कारंत, जान मार्टिन, बेनविट्ज  और बंसी कॉल जैसे अनेक देशी-विदेशी, नामी-गिरामी निर्देशकों के साथ काम करने का अनुभव. शेखर कपूर को उनकी चर्चित फिल्म बैंडिट क्वीन में भी सहयोग दिया. गोपाल के रंगमंडल के ख्यातनाम कलाकार एवं निर्देशक.
  • अशोक मिश्र (रायपुर) :-
    अभिनय और निर्देशन दोनों में ही राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि, दूरदर्शन के धारावाहिक भारत एक खोज तथा सुरभि सहित अनेक पटकथा लेखन.
  • अंधेरी नगरी, छतरियां, सिहासन खाली है आदि के निर्देशन से प्रसिद्धि.
  • फिल्म समर के पटकथा लेखन के लिए वर्ष 2000 का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
  • रंगकर्म के क्षेत्र में कार्यरत  संस्थाएं/ व्यक्ति
  • दाऊ रामचंद्र देशमुख ने अपने नाट्य संस्था चंदैनी गोंदा‘ (1971)के माध्यम से लोक कलाकारों को मंच प्रदान किया. यहां से तैयार हुए कलाकारों का हबीब तनवीर ने नया थिएटर में बखूबी उपयोग किया.
  • रंगकर्मी विभु कुमार एक लंबे अरसे से ‘हस्ताक्षर’, ‘अग्रगामी’, एवं ‘प्रयास’ नामक अपनी संस्थाओं के साथ सकरी रहे हैं.
  • भिलाई के सुब्रतो घोष, शक्तिपत चक्रवर्ती, राजकुमार सोनी,  गोपाल राजू दुर्गेश उमेश अग्रवाल आधुनिक रंगमंच के प्रमुख हस्ताक्षर है.
  • राजनांदगांव के भैया लाल गोड़ाई ने चेन्नई में ‘चंदैनी गोंदा’ और ‘सोनहा बिहान’ जैसे नाट्य संस्थाओं के अतिरिक्त फिल्मों व अनेक धारावाहिकों में अभिनय किया.
  • राकेश तिवारी राजा फोकलवा के लेखक निर्देशक है.

Leave a Comment