संभवतः प्रारंभिक मानव के आदि नृत्यों से नाट्य की उत्पत्ति हुई है आदिम नाट्य से प्रेरित होकर लोकनाट्य की संरचना हुई है इसलिए लोकनाट्य में आदिम जीवन के अनेक तत्व समाहित होते हैं नाट्यशास्त्र के प्रणेता भरत मुनि ने अपने ग्रंथ में लोकनाट्य का जिक्र किया है पारंपरिक संगीत नृत्य अभिनय एवं कथानक मिलकर लोकनाट्य का सृजन करते हैं लोकनाट्य लोक जीवन का संपूर्ण प्रतिबिंब है आसपास घटित कोई भी घटना लोकनाट्य का विषय हो सकती है यह सामाजिक अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा साधन है लोकनाट्य में लोक रंगमंच की रचना अत्यंत सरल होती है लोकनाट्य कर्म एक सामूहिक सहभागिता होती है इसमें पूरा गांव सक्रिय भागीदार होता है लोकनाट्य में स्त्री पात्र प्रायः पुरुष ही निभाते हैं आंचलिक रूढ़ियां लोकलोकनाट्य की मौलिक पहचान बनाती है हर अंचल के पारंपरिक लोक नाट्य की अपने निजी शैली निश्चित स्वरूप एवं उद्देश्य होता है लोकनाट्य प्रायः किसी अनुष्ठान एवं पर्व से जुड़े होते हैं लोकनाट्य के विषय जीवन के किसी भी आयाम से संबंधित होते हैं लोकनाट्य टीमें विषय वस्तु या कथानक को अधिक महत्व नहीं दिया जाता क्योंकि लोकनाट्य की सामग्री लिखित नहीं होती बल्कि रचे जाते हैं लोकनाट्य का स्वभाव और भाषा सामयिक होती है लोकनाट्य का प्रारंभ प्रायः पारंपरिक अनुष्ठान से होता हैऔर सामूहिक गायन वादन और नर्तन से होता है लोकनाट्य का मूूल उद्देश्य मनोरंजन के साथ समाज की अच्छाई और बुराई की नब्ज हाथ पर रखना है सब कुछ कह देने की सुविधा और स्वतंत्रता लोक नाट्य विधा में सबस अधिक है और यही लोकनाट्य की सबसे बड़ी ताकत है
- पंडवानी:- महाभारत के पांडवों की कथा का छत्तीसगढ़ी लोक रूप पंडवानी है पंडवानी का मूलाधार प्रधान और दीवारों की पंडवानी गायकी महाभारत की कथा और सबल सिंह चौहान की दोहा चौपाई महाभारत है इसके मुख्य नायक भीम है
- पंडवानी के लिए किसी विशेष अवसर ऋतु या अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती
- पंडवानी में एक मुख्य गायक एक हुंकार भरने वाला रागी तथा वाद्य पर संगत करने वाला लोग होते हैं जो आमतौर पर तबला ढोलक हारमोनियम और मंजीरा से संगत करते हैं मुख्य गायक स्वयं ने तंबूरा एवं करताल बजाता है
- पंडवानी की दो शाखाएं हैं वेदमती एवं कापालिक
- कापालिक शैली में कथा गायक गायिका की स्मृति में या कपाल में विद्यमान होती है कापालिक शैली वाचक परंपरा पर आधारित है कापालिक शैली की विख्यात गायिका है तीजन बाई ,शांति बाई चेलकने, उषा बाई बारले
- वेदमाती में शास्त्र सम्मत गायकी की जाती है वेदमाती शैली का आधार है शास्त्र अर्थात खड़ी भाषा में सबल सिंह चौहान के महाभारत जो पद्म रूप में हैं वेदवती शैली के गायक विरासन पर बैठकर पंडवानी गायन करते हैं झाड़ू राम देवांगन पुनाराम निषाद पंचराम रेवाराम वेदमति शैली के कलाकार हैं झाड़ू राम देवांगन महाभारत के शांति पर्व को प्रस्तुत करने वाले सर्वश्रेष्ठ कलाकार हैं
- अन्य कलाकार हैं दानी परधान गोगिया परधान रामजी देवार पुनाराम निषाद रितु वर्मा आदि
- दहीकांदो :-छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्र के आदिवासी कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर दहीकांदो नामक नृत्य नाट्य का प्रदर्शन होता है यह कर्मा और रास का मिलाजुला रूप है इसमें कदम्ब या इसी वृक्ष के नीचे राधा कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर इसके चारों ओर नृत्य करते हुए कृष्ण लीला का अभिनय होता है कृष्ण के सखा मनसुखा का पात्र इसमें विदूषक का होता है जो दही से भरा मटका फोड़ता है
- रहस:- रहस का अर्थ रास या रासलीला है इसमें संगीत नृत्य प्रधान कृष्ण के विविध विधाओं का अभिनय किया जाता है इसे एक पखवाड़े में संपन्न किए जाते हैं
- श्रीमद्भागवत के आधार पर श्री रेवाराम द्वारा रहस की पांडुलिपि या बनाई गई थी और इसी के आधार पर रहस का प्रदर्शन होता है इसके लिए संपूर्ण गांव को ब्रजमंडल मानकर इसकी नाट्य सज्जा की जाती है चित्र गांव के कलाकारों द्वारा गांव के विभिन्न स्थानों पर मिट्टी की विशाल मूर्ति स्थापित की जाती हैं जिनमें भीम कंस अर्जुन कृष्ण आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां होती है
- रहस का आयोजन बेड़ा रंगमंच में किया जाता है रहस प्रारंभ करने के पूर्वज का प्रतीक थुन्ह (खम्ब ) गाढ़ा जाता है रहस का आयोजन रात्रि काल में होता है रहस प्रसंग के बीच में गम्मत का भी आयोजन होता है इसमें छोटे हास्य प्रधान मनोरंजक प्रसंग प्रस्तुत किए जाते हैं रहस का सूत्रधार पात्र रासदारी कहलाता है जो कथा वाचन व्याख्या संगीत निर्देशन आदि करता है
- रहस के प्रचार प्रसार में उल्लेखनीय व्यक्ति हैं कौशल सिंह विशेषण सिंह केसरी सिंह बिलासपुर के मंझला महाराज और बुली ग्राम के रेवाराम कुली वाला
- रहस दो प्रकार के होते हैं पहला स्वर्ण रहस इसमें ब्रजभाषा का प्रभाव है दूसरा सतनामी रहस यह सतनामीओ द्वारा किया जाता है कथानक कृष्ण लीला का होता है तथा भाषा छत्तीसगढ़ी होती है
- भतरा नाट :-बस्तर के भतरा जनजाति के लोगों द्वारा किया जाने वाला नृत्य नाट्य है इसे मुख्यता पुरुष करते हैं इसका मंचन उत्सव जात्रा या मड़ई के अवसर पर होता है कुछ लोग इसे उड़िया नाट भी कहते हैं क्योंकि यह उड़ीसा से आया है
- इसमें भरतमुनि के नाट्य शास्त्र की अनेक बातें विद्यमान है जैसे कलाकारों का प्रवेश, प्रस्तावना मंचन के पूरे समय तक विदूषक का तेरी लकड़ी लेकर उपस्थित होना गणेश सरस्वती की आराधना आदि
- अधिकांश नाटक रामायण ,महाभारत एवं अन्य पौराणिक कथाओं पर आधारित होते हैं सभी नाटकों में भागवत धर्म की अच्छाइयों उच्च नैतिक गुणों का संदेश जीवन में पहुंचाया जाता है अभिमन्यु वध लक्ष्मण शक्ति जरासंध वध हिरण्यकश्यप वध दुर्योधन वध आदि का मंचन अधिक किया जाता है भतरा नाट छत्तीसगढ़ का आदिवासी थिएटर कहा जाता है
- नाचा :-नाचा छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोकनाट्य है. बस्तर के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के अधिकांश भागों में नाचा का प्रचलन है.
- नाचा का उद्भव गम्मत से माना जाता है जो मराठा सैनिकों की मनोरंजन का साधन था. गम्मत में स्त्रियों का अभिनय करने वाला नाच्या कहलाता है इसी से इस छत्तीसगढ़ी नाटक रूप का नाम नाचा पड़ा.
- नाचा अपने आप में एक संपूर्ण नाट्य विधा है. प्रहसन एवं व्यंजन इसके प्रमुख स्वर है.
- नाचा का आयोजन किसी भी अवसर पर पूरी रात के लिए किया जाता है।
- नाचे में केवल पुरुष कलाकार ही अभिनय करते हैं. यद्यपि कुछ नाट्य मंडलियों में देवार जाति की महिलाओं की भागीदारी भी होती है.
- सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सर्वे सफर लोकमानस जीत बात को स्वीकार नहीं कर पाता उसका मखौल वह नाचे द्वारा करता है कुरीतियों, विषमताओं, विद्रूपताओ और आडंबर ओ पर तीखी चोट नाचा द्वारा की जाती है.
- नाचा के अंतर्गत गम्मत का विशेष महत्व होता है. इनमें हास्य व्यंग काबू पाया जाता है. नाचा में कभी वह जोकर स्थाई रूप से मुख्य पात्र हैं परी एक सामान्य भोली भाली ने एक महिला होती है जबकि जोकड़ विदूषक होता है. दोनों के संबंध दर्शकों को हंसी से लोटपोट कर देते हैं नाचा को गम्मत भी कहा जाता है।
- हबीब तनवीर ने मृच्छकटिकम् से लेकर शेक्सपियर तक ब्रेख्त के नाटकों का मंचन नाचा शैली में करके इस नाते शैली को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई है.
- पद्म श्री गोविंदराम निर्मलकर नाचा के ख्याति लब्ध कलाकार है.
- खम्ब स्वांग :-खम्ब स्वांग का अर्थ है ‘खंबे के आसपास किया जाने वाला प्रहसन’. खंब का आशा यहां मेघनाथ कब से है.
- खम्ब स्वांग संगीत, अभिनय और मंचीय की दृष्टि से कोरकू आदिवासियों का संपूर्ण नाट्य है. किंवदंती है कि रावण पुत्र मेघनाद ने कोरकुओं को एक बार बड़ी विपत्ति से बचाया था. उसी की स्मृति में इसका आयोजन किया जाता है.
- क्वार नवरात्रि से देव प्रबोधिनी एकादशी तक इसी गांव के आसपास कोरकू प्रत्येक रात नए-नए स्वांग खेलते हैं.
- माओपाटा :-माओपाटा बस्तर मुड़िया जनजाति में प्रचलित प्रसिद्ध लोक नाट्य है.
- माओपाटा बाईसन (गौर) के समिूहक आखेट पर आधारित नृत्य नाटिका है जिसमें गौर का शिकार वह उस में आने वाली बाधाओं का मंचन किया जाता है. संपूर्ण नृत्य नाट्य में बाइसन की आक्रामक मुद्रा शानदार अभिनय किया जाता है. इसमें शिकारी रूप में एवं सिरहा का अभिनय अत्यंत नाटकीय व प्रभावशाली होता है.
- नाट्य में शिकार उपरांत गौर को गांव लाते दिखाया जाता है तथा नृत्य गीत का आयोजन होता है. देवी देवताओं को आभार प्रकट किया जाता है अंत में श्री रहा देवताओं को मदिरा अर्पित कर प्रसाद रूप में सभी आदिवासी मदिरापान करते हैं और आनंद मनाते हैं.
- शिकार पर भेजने का वापसी पर उत्सव मनाने के दौरान युवतियों की भागीदारी नाट्य में होती है.
- गम्मत :-गम्मत में सामान्यता: कृष्ण की लीला का आख्यान होता है तथा बीच-बीच में प्रहसन का प्रदर्शन होता है.
- गम्मत एक या अधिक दिनों तक आयोजित हो सकता है या विशुद्ध रूप से भक्ति भाव से संपृक्त लोकरंजन की नाट्य विधा है. कहीं-कहीं नाचे को भी गम्मत कह दिया जाता है परंतु दोनों में आंशिक अंतर है.
गम्मत के दो प्रकार हैं–
1. रतनपुरिहा गम्मत
2. खड़ी गम्मत