Tribal movement in Chhattisgarh | छत्तीसगढ़ में आदिवासी आंदोलन

छत्तीसगढ़ के आदिवासी विद्रोह – Major tribal revolts of Chhattisgarh , बस्तर विद्रोह 1910 , छत्तीसगढ़ आदिवासी आंदोलन , tribal revolt in chhattisgarh ,
Tribal movement in Chhattisgarh | छत्तीसगढ़ में आदिवासी आंदोलन
छत्तीसगढ़ राज्य में 18 शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक अनेक आदिवासी विद्रोह हुए ज्यादा आदिवासी विद्रोह बस्तर क्षेत्र में जहां के आदिवासी अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए क्या है विशेष सतर्कता थे इन विद्रोह में एक सामान्य विशेषता यह थी कि
- यह सभी विद्रोह आदिवासियों को अपने निवास क्षेत्र भूमि वन में हासिल परंपरागत अधिकारों को छीने जाने के विरोध में हुआ था
- यह विद्रोह आदिवासी अस्मिता और संस्कृति के संरक्षण के लिए भी हुए
- विद्रोहियों ने नई शासन व्यवस्था और ब्रिटिश राज द्वारा थोपे गए नियम कानूनों का विरोध किया
- आदिवासी मुख्यतः बाहय जगत व शासन के प्रवेश से अपने जीवन शैली संस्कृति एवं निर्वाह व्यवस्था मैं में उत्पन्न ना हो रहे खलल को दूर करना चाहते थे उल्लेखनीय बात थी कि आदिवासियों के द्वारा आरंभ विद्रोह में छत्तीसगढ़ के गैर आदिवासी भी भागीदारी बने वस्तुतः विद्रोह मूलतः गैर छत्तीसगढ़ी बाहरी लोगों और शासन के विरुद्ध था
हलबा विद्रोह (1774–78 ई.)
- हलबा विद्रोह (1774–78 ई.) छत्तीसगढ़ का प्रथम आदिवासी विद्रोह 1774 में राजा दलपतदेव की मृत्यु के बाद अजमेर सिंह एवं दरिया देव के बीच उत्तराधिकार संघर्ष से आरंभ
- अजमेर सिंह को हलबा आदिवासियों व सैनिकों का समर्थन प्राप्त था वह डोंगर में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना चाहता था
- दरिया देव ने मराठा शासक एवं अंग्रेजों से कोट पाड़ की संधि 1778 से समर्थन प्राप्त कर विद्रोह का अत्यंत क्रूरता से दमन किया हलबा विद्रोहियों में केवल एक अपनी जान बचा सका
- इस विद्रोह के फलस्वरूप बस्तर से कमजोर चालुक्य शासन का अंत हुआ वह मराठों को उस क्षेत्र में प्रवेश का अवसर मिला जिसका स्थान बाद में ब्रिटिश ने ले लिया
भोपालपटनम संघर्ष (1795 ई.)
- भोपालपटनम संघर्ष 1795 कैप्टन ब्लंट एवं बस्तर के आदिवासियों का मध्य
परलकोट विद्रोह (1825 ई).
- परलकोट विद्रोह 1825 परलकोट विद्रोह मराठा और ब्रिटिश सेनाओं के प्रवेश के विरोध एवं सांस्कृतिक संरक्षण हेतु हुआ था इस विद्रोह का नेतृत्व गेंदसिंह ने किया था और उसे अबूझमाड़ीयो का पूर्ण समर्थन प्राप्त था
- विद्रोहियों ने मराठा शासकों पर लगाए कर को देने से इंकार कर दिया और बस्तर पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की
- कैप्टन पैब द्वारा विद्रोह का दमन
- गेंदसिंह को 20 जनवरी 1825 को फांसी दी गई
तारापुर विद्रोह (1842–54) ई.
- तारापुर विद्रोह (1842–54) ई.बाहरी लोगों के प्रवेश से स्थानीय संस्कृति को बचाने के लिए अपने पारंपरिक सामाजिक आर्थिक राजनीतिक संस्थाओं को कायम रखने के लिए आंगल मराठा शासकों द्वारा लगाए गए करो का विरोध करने के लिए स्थानीय दीवानों द्वारा यह विद्रोह प्रारंभ किया गया
- विद्रोह का नेतृत्व स्थानी दीवान दलगंजन सिंह द्वारा किया गया
माड़िया विद्रोह (1842-63) ई.
- माड़िया विद्रोह (1842-63) ई. इस विद्रोह का मुख्य कारण सरकारी नीतियों द्वारा आदिवासी आस्थाओं को चोट पहुंचाना था दंतेवाड़ा मंदिर में नरबलि प्रथा के समर्थन में माडिया जनजाति का यह विद्रोह 20 वर्षों तक चला
- इसका नेतृत्व हिड़मा मांझी द्वारा किया गया
लिंगागिरि विद्रोह (1856-57) ई.
- लिंगागिरि विद्रोह 1856-57 ई. अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध 1857 विद्रोह के दौरान दक्षिण बस्तर में ध्रुवराव या धुरवा राव ने ब्रिटिश सेना को जमकर मुकाबला किया धुरवा माड़िया जनजाति के डोरला उपजाति का था उसे अन्य आदिवासियों का पूर्ण समर्थन हासिल था
कोई विद्रोह 1859 ई.
- कोई विद्रोह 1859 ई. मैं दक्षिणी बस्तर में एक नए विद्रोह की शुरुआत हुई यह मूलतः वन पर अधिकार की मांग व शोषण के विरुद्ध वन रक्षार्थ हुए इस आंदोलन को छत्तीसगढ़ का चिपको आंदोलन भी कहते हैं
- विद्रोहियों का नेतृत्व नागुल दोरला द्वारा
- विद्रोहियों ने ठेकेदारों को साल वृक्ष काटने से रोकने के लिए हथियार उठा लिए उनका नारा था एक साल वृक्ष के पीछे एक व्यक्ति का सिर
मुड़िया विद्रोह 1876 ई.
- मुड़िया विद्रोह 1876 में गोपीनाथ कॉपरदास बस्तर राज्य का दीवान बना और उसने आदिवासियों का बड़े पैमाने पर शोषण आरंभ किया उसका विरोध करने के लिए विभिन्न परगनो के आदिवासी झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में एकजुट हो गया और राजा से दीवान की बर्खास्तगी की अपील की किंतु यह मांग पूरी ना होने के कारण उन्होंने 1876 में जगदलपुर का घेराव कर लिया राजा को किसी तरह अंग्रेज सेना ने संकट से बचाए उड़ीसा में तैनात ब्रिटिश सेना ने इस विद्रोह को दबाने में राजा की सहायता की
- विद्रोह का दमन कैप्टन मैक जॉर्ज द्वारा किया गया 1876 में मुड़ियाओ के असंतोष को दूर करने के लिए मुड़िया दरबार का आयोजन भी किया गया
भूमकाल विद्रोह 1910 ई.
- भूमकाल विद्रोह 1910 ईस्वी भूमकाल विद्रोह बस्तर का सबसे महत्वपूर्ण व व्यापक विद्रोह था इस विद्रोह का नेतृत्व धुरवा समुदाय के वीरगुंडाधुर ने किया इसने बस्तर के 84 में से 46 परगने को अपने चपेट में ले लिया इस विद्रोह के प्रमुख कारण थे
- आदिवासी वनो पर अपने पारंपरिक अधिकारों भूमि व अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मुक्त उपयोग तथा अधिकार के लिए संघर्षरत थे 1908 में जब यहां आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया और वनोपज के दोहन पर नियंत्रण लागू किया गया तो आदिवासियों ने इसका विरोध किया
- राजमाता स्वर्ण कुंवर एवं लाल कलिंद्र की उपेक्षा
- अंग्रेजों ने एक ओर ठेकेदारों को लकड़ी काटने की अनुमति दी और दूसरी ओर आदिवासियों द्वारा बनाए जाने वाली शराब के उत्पादन को अवैध घोषित किया
- साहूकार के शोषण का विद्रोह
- विद्रोहियों ने नवीन शिक्षा पद्धति व स्कूलों को सांस्कृतिक आक्रमण के रूप में देखा अपनी संस्कृति की रक्षा करना ही उनका उद्देश्य था
- पुलिस के अत्याचार ने भूमकाल विद्रोह को संगठित करने में एक और भूमिका निभाई
- पुषपाल बाजार में लूट की घटना से विद्रोह का आरंभ
- प्रचार के लिए आम की टहनी लाल मिर्च धनुष बाण का उपयोग
भूमकाल विद्रोह का दमन मिस्टर गेयर तथा डी ब्रेट द्वारा.
- उक्त सभी विद्रोह का आंगल मराठा सैनिक दमन करने में सफल रहे व विद्रोहियों को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता नहीं मिल सकी पर राजनीतिक चेतना जगाने में यह सफल रहे क्या है सरकार को भी अपने नीति निर्माण में इनकी मांगों को ध्यान में रखना पड़ा अट्ठारह सौ सत्तावन के महान विद्रोह के उपरांत भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक जीवन में हस्तक्षेप न करने की अंग्रेज नीति ऐसे ही विद्रोह का परिणाम थी कालांतर में हिंदुओं के आर्थिक कार्य कार्य को ने नवीन भारत के नीति निर्माण में भी मार्गदर्शन किया
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